( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )
चल उठो करलो तयारी ,
मांतका दिन आ रहा है || टेक ||
धन - हवेली सब भुलेगी ,
तन - लँगोटी वह खुलेगी ।
बाँसपर काया झुलेगी ,
यह शिरस्ता आ रहा है ॥१ ॥
बहन - भाई जोरु - लडके ,
अंतमें खोजे न तडके ।
सब धनोंपर आय पडके ,
जूतियाँ तुहि खा रहा है ॥२ ॥
गोफ कडियाँ लाल जडियाँ ,
अंतमें सब जाय पड़िया ।
ले चले साथी लकडियाँ
वह मजा फिर पा रहा है ॥३ ॥
कौडी कौडी जोड कीन्ही ,
चोरने सब अंत छिनी ।
कहत तुकड्या सुन कहानी ,
दमपेदम यहि रो रहा है ॥४ ॥
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